अमर शहीद ठाकुर दरियाव सिंह जी का जीवन परिचय, इतिहास और सम्पूर्ण जानकारी
“शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्। दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्॥”
अमर शहीद शिरोमणि क्रांतिकारी ठाकुर दरियाव सिंह जी सन् 1857 की प्रथम स्वाधीनता संग्राम के प्रसिद्ध स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी थे।
ठाकुर दरियाव सिंह जी का जन्म जनपद फतेहपुर (उ०प्र) के खागा के एक प्रतिष्ठित सिंगरौर क्षत्रिय-राजपूत वंश में सन् 1795 में हुआ था।
ठाकुर दरियाव सिंह Wiki Profile
अमर शहीद ‘ठाकुर दरियाव सिंह का जन्म सिंगरौर शाखा में जिला फतेपुर के खागा तहसील में हुआ था। इनका जन्म सन 1800 ई० में हुआ था। इनके पिता का नाम ठाकुर मर्दन सिंह था। ये खागा के तालुकदार थे। ठाकुर दरियाव सिंह की आयु सन 1857 की क्रांति के समय लगभग 57 वर्ष थी। फतेहपुर में बने मेडिकल कॉलेज का नाम अमर शहीद जोधा सिंह (Amar Shaheed Jodha Singh) अटैया और ठाकुर दरियाव सिंह (Thakur Dariyav Singh) के नाम पर रखा गया है।इनका पुरा नाम ठाकुर दरियाव सिंह है। 6 मार्च 1858 ई. को अत्याचारी ब्रिटिश शासन ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। ये एक महान क्रांतिकारी थे।
ठाकुर दरियाव सिंह Biography
वीर शिरोमणि अमर शहीद ठाकुर दरियाव सिंह का जन्म सन १७ ९५ ई० में गंगा यमुना पवित्र नदी के मध्य भूभाग में बसे खागा नगर में तालुकेदार ठा० मर्दन सिंह के पुत्र रत्न के रूप में हुआ| आद काल में इनके वंशज महापराक्रमी सूर्यवंश के वत्स गोत्रीय क्षत्रिय खड्ग सिंह चौहान ने इस भूभा के राजा को परास्त करके उनके राज्य को अपने अधिकार में लेकर एक नये नगर का निर्माण कराया था, जो बाद में उन्ही के नाम पर खागा नाम से प्रसिद्ध हुई, वर्तमान में यह उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जनपद की एक तहसील है|
इनके वंशज राजस्थान से आये रोर समूह के क्षत्रियो में चौहान क्षत्रिय थे और इनके समाज में रीति रिवाज एवम संस्कारो के कठोर नियमो का पालन अनिवार्य था| १८वी के शताब्दी मध्य तक सती प्रथा लागू थी| ग्राम सरसई में सती माता का मन्दिर आज भी विद्दमान है| इनके समाज के लोग रक्त की शुद्धता बनाये रखने के लिये राजस्थान से आये रोर समूह के क्षत्रियों में ही वैवाहिक सम्बन्ध करते थे| १८वी शताब्दी के अंत तक इनके परिवार में कन्या का विवाह रोर समूह के सिर्फ रावत, रावल, परमार, सेंगर क्षत्रियो में ही होता था और बधू सिर्फ रोर समूह के गौम, परिहार, चंदेल और बिसेन क्षत्रियो के यहाँ से ही लाते थे| महार ठाकुर दरियाव सिंह का ननिहाल ग्राम बुदवन, खागा,जनपद फतेहपुर में गौतम क्षत्रिय ठाo श्री पाल सिंह के यहाँ था और इनकी ससुराल ग्राम सिमरी,जनपद रायबरेली में गौतम क्षत्रिय के यहाँ थी |इनकी पत्नी का नाम सुगंधा था| इनके दो वीर पुत्र और दो कन्याएं थी| जनमें ज्येष्ठ पुत्र का नाम ठा० सुजान सिंह और छोटे पुत्र का नाम ठा० देवी सिंह था| इनकी बड़ी कन्या का विवाह ग्राम किशनपुर जनपद फतेहपुर में रावत (गोत्र भरद्वाज) क्षत्रियों के यहाँ हुई थी| छोटी कन्या का विवाह ग्राम किशनपुर में ही रावल (गोत्र काश्यप) क्षत्रियो के यहाँ हुई थी जो कि ग्राम इकडला के निवासी थे| इतिहास जानने के बाद ऐसा ज्ञात होता है कि शायद ठा० सुजान सिंह और ठा० देवी सिंह की ससुराल जनपद रायबरेली में परिहार क्षत्रियो के यहाँ हुई थी| ६ मार्च १८५८ को ठा० देवी सिंह को छोडकर परिवार के सभी सदस्य फांसी द्वारा म्रत्यु दंड पाकर वीरगति को प्राप्त होने के उपरांत उन कठिन समय में ठा० देवी सिंह अज्ञातवास को चले गये थे और ठा० सुजान सिंह, ठा० देवी सिंह की पत्नियो को अपने अपने पिता के यहाँ शरण लेनी पड़ी थी|
सन १८०८ ई० तक इस भूभाग पर इनका अपना स्वतन्त्र राज्य , इसके बाद में यह भूभाग अंग्रेजों के आधीन हुआ| ठा० दरियांव सिह धर्म परायण साहसी स्वाभिमानी रणविद्या में निपुण एवं कुशल संगठन कौशल के महारथी थे| सन १८५७ ई० में इस पराक्रमी वीर के नेतृत्व में यहाँ की जनता अंग्रेजी शासन के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर ८ जून सन १८५७ को अंग ्रेजो को परास्त कर जनपद के इस भभाग को अपने अधिकार में लेकर स्वतंत्रता का परचम लहराया था| इसी उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष ८ जून को यहाँ की जनता बड़े धूम धाम से इस दिन को विजय दिवस के रुप में मनाती है| परन्तु कुछ ही मास बाद यह भूभाग पुन: अंग्रेजो के आधीन हुआ और चंद विश्वासघातियो के कारण यह वीर अपने परिवार एवं मित्रो सहित बंदी बनाये गए और ६ मार्च १८५८ को फांसी द्वारा म्रत्यु दण्ड पाकर यह वीर मात्भूमि स्वाधीनता हेतु अपने परिवार सहित शहीद होकर वीरगति को प्राप्त हुए और इनकी सम्पति को अग्रेजो द्वारा गद्दारों को पुस्कार स्वरुप दे दी गयी थी | आज भी इनके भब्य गढ़ी के ध्वंसा अवशेष इनके त्याग पराक्रम वीरता संघर्ष और बलिदान का इतिहास संजोये हुए है|
अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह
खागा के ठाकुर दरियाव सिंह बिठूर के नाना साहब, अवध के केशरी राणा बेनीमाधव सिंह ने गुप्त बैठकें कर कई जनपदों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया। 4 जून को कानपुर और 7 जून को प्रयागराज स्वतंत्र घोषित हो गए। इसके बाद 200 विद्रोहियों ने फतेहपुर में डेरा डाल दिया। 8 जून को ठाकुर दरियाव सिंह के सेनानायक व उनके पुत्र सुजान सिंह ने खागा के राजकोष में कब्जा कर लिया और स्वतंत्रता का ध्वज लहरा दिया। 9 जून को फतेहपुर कचहरी और राजकोष में कब्जा जमाने के लिए सारे सैनिकों ने धावा बोला जिसमें रसूलपुर के जोधा सिंह अटैया, जमरावा के ठाकुर शिवदयाल सिंह, कोराई के बाबा गयादीन दुबे भी फौज फाटे के साथ शामिल हुए।
क्रांतिकारियों का दबाव बढ़ा तो अंग्रेज कलक्टर मि. टक्कर ने बंगले में ही आत्महत्या कर ली और दीवार में लिख दिया कि कोराई के गयादीन दुबे की वादा खिलाफी पर जान दी है। 10 जून को विद्रोही जेल पहुंचे और बंदियों को मुक्त कराया। बिठूर में नाना साहब को फतेहपुर के स्वतंत्र होने की जैसे ही खबर लगी, उन्होंने स्वतंत्र सरकार के चकलेदार (प्रशासक) के रूप में डिप्टी कलक्टर हिकमत उल्ला खां को नियुक्त कर दिया।
फतेहपुर व कानपुर में पूर्ण अधिकार मिलने की खुशी में बिठूर में तोपें दागी गई और क्रांतिकारियों ने सभी जिले के कोतवालों को यह हुक्म दिया कि नगर व गांवों में डुग्गी पिटवाकर यह बता दिया जाए कि अब अपनी सरकार है। एक माह तक जिले में स्वतंत्र सरकार चली। उधर अंग्रेजी हुकूमत विद्रोहियों को कुचलने की पूरी रणनीति तैयार कर रही थी। 11 जून को मेजर रिनार्ड को फतेहपुर में अधिकार जमाने के लिए इलाहाबाद से रवाना किया गया। सेना की एक टुकड़ी के साथ उसने जीटी रोड के कटोघन गांव में पड़ाव डाल दिया। इसकी सूचना जैसे ही ठाकुर दरियाव सिंह को मिली, नाना साहब को जानकारी दी फिर दोनों तरफ से मोर्चेबंदी शुरू हो गई। 11 जुलाई को मेजर रिनार्ड ने खागा में आक्रमण कर दिया। दरियाव सिंह के महल को तोपों से ध्वस्त कर दिया लेकिन कोई गिरफ्तार नहीं हो पाया। अग्रेंजी सेनाओं का दबाव बढ़ा तो जिले के क्रांतिकारियों ने यमुना पार कर बांदा को सुरक्षित ठिकाना बना लिया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमर शहीद ठाकुर दरियाव सिंह का विजय दिवस 8 जून को मनाया जाता है।
Thakur Dariao Singh Full Biography in Detail
इनके पिताश्री ठाकुर मर्दन सिंह जी खागा के तालुकेदार थे और माताश्री गौतम वंश की इसी जनपद के बुदवन ग्राम से थीं। ठाकुर दरियाव सिंह जी वत्सगोत्रीय (गोत्र-वत्स) थे। इनकी पत्नी का नाम सुगंधा था, जो रायबरेली (उ०प्र) जनपद के सरेनी ग्राम के गौतम वंश से थीं। इनको दो पुत्रियां व दो पुत्र ठाकुर सुजान सिंह जी और ठाकुर देव सिंह जी हुए जिनका विवाह भी रायबरेली (उ०प्र) जिले के गौतम वंश में ही हुआ।
ठाकुर दरियाव सिंह सिंगरौर (क्षत्रिय) खागा के तालुकेदार थे। अत्यंत आकर्षक और बहुमूल्य प्रतिभा के धनी ठाकुर दरियाव सिंह जी के बड़े-बड़े लाल डोरों से युक्त चमचमाते नेत्र, ओजपूर्ण मुख मण्डल, विशाल वक्षस्थल, ऊँची कद-काठी, सिर में बंधी हुई लटें, गले में रुद्राक्ष की माला और दाहिने ओर लटकती हुई भारी भरकम तलवार उनके व्यक्तित्व में चार चांद लगाती थी। ये अत्यंत पराक्रमी, शक्तिशाली वीर पुरुष होने के साथ साथ बड़े ही स्वाभिमानी थे। इनमें राजनैतिक सूझ-बूझ, विद्वता और चातुर्य के साथ संगठन क्षमता अद्वितीय थी। ये देवी के बहुत बड़े उपासक भी थे। इन्होंने कई मंदिरों का निर्माण भी करवाया। ये नित्य माँ दुर्गा और महावीर हनुमान जी की पूजा करते थे। स्थानीय बड़े-बुज़ुर्ग बताते हैं कि पूजा करते समय उनकी तलवार स्वत: ज़मीन से एक हाँथ ऊपर उठ जाती थी। ये बड़े ही न्यायप्रिय शासक थे और अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखते थे।
स्थानीय मान्यता के अनुसार,“ ठाकुर दरियाव सिंह जी के पूर्वज ठाकुर खड़ग सिंह जी द्वारा खागा बसाया गया था” इनके पूर्वज इलाहाबाद से 37 कि०मी० उत्तर-पश्चिम में गंगा किनारे बसे सिंगरौर (त्रेतायुग का श्रृंगवेरपुर) से जिला फतेहपुर के सरसई ग्राम आये थे। इनका मूल स्थान राजस्थान था अर्थात् इनके पूर्वज पहले राजस्थान से सिंगरौर आए फिर वहां से जिला फतेहपुर के सरसई ग्राम चले आए थे।
ठाकुर दरियाव सिंह सिंगरौर (क्षत्रिय) के पास एक छोटा किला था जिसे गढ़ी कहते थे, जो बहुत ही मजबूत और सुरक्षित थी। गढ़ी की मोटी मोटी दीवारें बालू और विशेष प्रकार के गारे से भरी हुई थी जिसके चारों तरफ़ पानी की गहरी खाई थी। उस गढ़ी में सात पक्के कुएं और एक बहुत बड़ा कुआं था जिसे इंदारा कहते थे। गढ़ी के अन्दर ही एक बड़ा गोल पक्का चबूतरा भी पहलवानों की पहलवानी के लिए बनवाया गया था। बाद में इस अमूल्य धरोहर को अंग्रेजों द्वारा नष्ट कर दिया गया परन्तु इसके खण्डहर व अवशेष आज भी विद्यमान हैं। वर्तमान में वहीं पर ठाकुर दरियाव सिंह जी की मूर्ति लगाकर उनका भव्य स्मारक बनाया गया है।
सन् 1857 में जब अवध में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा तब ठाकुर दरियाव सिंह जी ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की योजना बनाई। ठाकुर दरियाव सिंह जी के द्वारा की गई क्रांति ही फतेहपुर की क्रांति कही जाती है। इनके परिवार में बहुत पहले से ही अंग्रेजी सत्ता के विरोध में खुलकर चर्चा होती रहती थी।
जब इलाहाबाद और कानपुर में क्रांति भड़की तब वे खागा में मौजूद नहीं थे। उनकी अनुपस्थिति में 8 जून 1857 दिन सोमवार को उनके ज्येष्ठ पुत्र ठाकुर सुजान सिंह सिंगरौर की अगुवाई में उनकी सेना ने तहसील खागा के भवन और खज़ाने पर हमला करके उस पर अधिकार कर लिया और अपनी स्वतंत्रता का झण्डा गाड़ दिया। उधर आमंत्रण पाकर जमरावा के ठाकुर शिवदयाल सिंह सिंगरौर और अटैया रसूलपुर के ठाकुर जोधा सिंह सिंगरौर भी अपने सैनिकों और साथियों के साथ आ गए। सब एकजुट होकर खज़ाने की तरफ कूंच किया। ठाकुर दरियाव सिंह जी अपने पुत्र एवं स्वजनों के साथ मिलकर अंग्रेजों से लोहा लेते रहे। ये बात पूरे जनपद में फैल गई और लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध खुला विद्रोह कर दिया।
अंग्रेज उनसे पूरे नौ महीने जूझते रहे लेकिन उनको ना रोक पाए और ना ही झुका पाए, बल्कि उन्होंने अंग्रेजों को पूरे जिले भर में टक्कर देकर नाकों चने चबुआ दिये। अंग्रेजी सेना यमुना पार करके बांदा भाग गई और जो बचे थे वो सारे डरकर छिप गए। सम्पूर्ण जनपद फतेहपुर दासता से मुक्त होकर स्वतंत्र हो गया और ठाकुर दरियाव सिंह जी ने पूरे 32 दिन तक फतेहपुर में स्वतंत्र सरकार चलाई थी।
प्रसिद्ध अंग्रेज लेखक विलियम क्रुक्स ने ठाकुर दरियाव सिंह जी को “सिंगरौर क्षत्रिय” बताते हुए लिखा है कि “ क्रांति के समय दरियाव सिंह के नेतृत्व में सिंगरौर क्षत्रियों ने फतेहपुर जिले में (अंग्रेजों को) बहुत कष्ट पहुँचाया” ठाकुर दरियाव सिंह जी की सेना में सिंगरौर क्षत्रियों की संख्या अधिक थी। सिंगरौर क्षत्रियों के अलावा उनकी सेना में मुस्लिमों ने भी सहयोग दिया।
4 फरवरी सन् 1858 को रात्रि में एक गद्दार मुखबिर की सूचना देने पर अंग्रेजों ने ठाकुर दरियाव सिंह जी के साथ उनके 40 वर्षीय ज्येष्ठ पुत्र ठाकुर सुजान सिंह सिंगरौर, 56 वर्षीय अनुज निर्मल सिंह सिंगरौर, रघुनाथ सिंह, तुरंग सिंह और बख्तावर सिंह को छल से गिरफ्तार कर लिया। इन सभी क्रांतिकारियों को कारावास में कठोर यातनाएं दी गईं।
अन्त में उन्हें और उपरोक्त सभी क्रांतिकारियों को खागा और फतेहपुर के सरकारी खजाने को 8 और 9 जून सन् 1857 को लूटने और फूंकने के अभियोग में मात्र 32 दिन में मुकदमे की कार्यवाही पूर्ण करके क्रूर ब्रिटिश शासन ने 6 मार्च सन् 1858 को जिला जेल में फाँसी की सजा दे दी। परन्तु महान अमर बलिदानी ठाकुर दरियाव सिंह जी ने जिले की माटी को क्रांति की धरा में तब्दील कर अपने परिवार के साथ शहीद होकर स्वतंत्रता-संग्राम के दहकते अंगारे बन गए और अपना नाम अपनी मातृभूमि पर स्वर्णाक्षरों में अंकित करा लिया।
खागा के कवि श्री बृजमोहन पाण्डेय ‘विनीत’ जी ने उनके सम्बन्ध में सही ही लिखा कि,
“खागा के दरियाव लिख गए जो बलिदानी गाथा।उनकी याद जब भी आती बरबस झुक जाता माथा।।”
संदर्भ ग्रंथ:-👇
•जिला गजेटियर फतेहपुर 1980, पृष्ठ सं 250
• डाॅ बासुदेव सिंह, बैसवारा का इतिहास (1997 ई०), पृष्ठ 306
• विलियम क्रुक्स, दि ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स आॅफ नार्थ-वेस्टर्न प्राविन्सेज़ एण्ड अवध (1896 ई०),खण्ड दो
• Rajput Clans of Uttar Pradesh
• ठाकुर सरनाम सिंह सूर्यवंशी जी द्वारा लिखित पुस्तक “ 1857 के दहकते अंगारे”
बहुत ही सुंदर। आपका बहुत बहुत धन्यवाद
इनके बारे में बहुत कम लोग जानते है, आपने बहुत अच्छा और सही तथ्य प्रस्तुत किए