क्षत्रिय और राजपूत और ठाकुर में मुख्य अंतर क्या है
अगर आप राजपूत, क्षत्रिय या ठाकुर है तो इसे जरूर पढ़ना चाहिए.
1. क्षत्रिय
क्षत्रिय शब्द राजपूत और ठाकुर दोनों से बहुत पुराना है क्षत्रिय शब्द का वर्णन वेदों मैं मिलता है क्षत्रियों एक वर्ण है जिनका का धर्म देश और जनता की रक्षा करना होता है अतः क्षत्रिय कोई भी बन सकता है।
2. राजपूत
राजपूत शब्द दो अलग अलग शब्द से निकला है पहला रजपुत्, दूसरा राजपुत्र
रजपुत् का मतलब धरती का पुत्र होता है और राजपुत्र का मतलब राजा का पुत्र ।
रजपुत् की उत्पत्ति हर्षवर्धन कि मृत्यु के बाद भारत में छोटे छोटे राजवंश का उदय हुआ जो आपस में लड़ते रहते थे इन्हीं में से एक वंश था गुर्जर प्रतिहार वंश जिसने एक संघ बनाया जिसका नाम रजपुत रखा जिसके लडने और स्वाभिमान के नियम बनाए जो क्षत्रिय से मिलते थे यह संघ देश के लिए बहुत लाभदायक हुआ लोग इसमें शामिल होने में गर्व करते थे इनके सैनिकों को बहुत सम्मान दिया जाता था उस समय मौजूद सभी राजा धीरे धीरे इन नियमो को मानने लगे लेकिन समय के साथ इसके जातिवाद ने जन्म ले लिया और यही भारत के लिए श्राप बन गया और राजपूत शब्द निकल आया जिसका मतलब राजा पुत्र बताया गया और क्षत्रिय और इसे एक ही बताया गया गुर्जर प्रतिहार वंश के कारण ही राजपूतों का उदय हुई और यही कारण है कि गुर्जर प्रथ्वी राज चौहान को गुर्जर बताते है।
राजपूत जाति है क्षत्रिय वर्ण है ठाकुर उपाधि है राजा का पुत्र राजपूत कहलाता था जो आज जाती है वैसे उनकी जाती जो रहती थी वो भी खुद को राजपूत ही कहते थे क्षत्रीय हिन्दू धर्म का एक वर्ग ग्रुप होता था जो धर्म ब्राह्मण और राज्य का रक्षा करता है ठाकुर ये जमीदार को तुर्की में तक्कुर कहा जाता था के कई लोग प्रयोग करते है मगर सबसे पहले ब्राह्मण ने प्रयोग किया अब तो राजपूत नाई हज्जाम घोसी अहीर मालधारी तक प्रयोग करते है
3 ठाकुर
ठाकुर एक उपाथी होती थी जो अन्यदाता मतलब कि जो व्यक्ति किसी को पालता है उसे ठाकुर कह सकते है ।
जिसका ज्यादातर जागीरदारो ने उपयोग किया है अत जिन जातियों में जागीरदार हुए वोह सभी जाती ठाकुर लगाने लगी है।
क्षत्रिय: वर्ण व्यवस्था का दूसरा अंग, जिसमें सनातन धर्म में जन्मे युवक को शारीरिक बल से रक्षा करने का सौभाग्य प्राप्त हो। गौ, ब्राह्मण, स्त्री और प्रजा की रक्षा करने वाला क्षत्रिय कहलाता है। पहले लोग वर्ण बदल सकते थे लेकिन कालांतर में वर्ण स्थिर हो गए थे, तो क्षत्रिय का वंश क्षत्रियवंश कहलाता था, चाहे वो अपनी आजीविका कमाने के लिए कोई भी कार्य करे। लेकिन ज़्यादातर क्षत्रिय, सैन्य कार्य और कर्षिकार्य ही करते थे।
राजपूत : क्षत्रिय राजवंशों के वंशजों को राजपुत्र कहा जाता था, जिसका अपभ्रंश राजपूत हुआ। अरबी आक्रांताओं को क्षत्रिय बोलने में दिक्कत आती थी इसलिए उन्होंने राजपूत शब्द से क्षत्रियों को संबोधित किया और क्षत्रिय राजपूत कहलाने लगे।
ठाकुर : क्षत्रिय राजपूतों की एक पदवी होती है। राजपूत राजवंश में महाराजा के स्वर्गवास के बाद महाराजकुमार ( ज्येष्ठ युवराज ) को राजगद्दी मिलती थी, और जो राजा के अन्य राजकुमार होते थे, उन्हें कुछ गांव की जागीरी या ठिकाने का पट्टा दे दीया जाता था और उन्हें ठाकुर, महाराज, राव, राजा आदि उपाधि से सम्मानित किया जाता था।
निष्कर्ष : क्षत्रिय और राजपूत दोनों एक दूसरे का पर्याय है और ठाकुर इन्हें दी जाने उपाधि है।