इतिहास

जनपद फतेहपुर के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर दरियाव सिंह एवं उनका जीवनवृत्त

जैसा कि आप लोग जानते है कि अपना भारतवर्ष कई सदियो तक विदेशी आक्रान्ताओ के कारण गुलाम रहा। देश की आजादी के लिये देश के अनगिनत लोगो ने अपना सब कुछ निछावर करने के साथ साथ प्राणो का बलिदान तक किया। आज हम सभी उन्ही महान बलिदानियो के किये संघर्ष के कारण स्वतंत्रता की सांस ले पा रहे है। हम लोग महात्मा गांधी, सुभाषचन्द्र बोस, भगत सिंह रामप्रसाद बिस्मिल, रानी लक्ष्मीबाई आदि देशभक्तो की पुण्य तिथियो मे विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनो के द्वारा उनका नमन वंदन करके भावभीनी श्रद्धाजंलि देते है, परन्तु इन देशभक्तो के साथ साथ बहुत से ऐसे भी देशभक्त रहे है जिन्होने अपना सर्वस्व भारत माता की आजादी के लिये बलिदान कर दिया और वह गुमनामी के अंधेरो मे खो गये। वर्तमान मे केन्द्र सरकार आजादी का 75वां वर्ष मना रही है जिसका मुख्य उद्देश्य ऐसे देशभक्त जिन्होने स्वतंत्रता संग्राम मे बढ चढकर हिस्सा लिया किन्तु कालगति के कारण गुमनामी के अंधेरो मे खो गये, हम सब उन्हे भी जाने और उनके श्री चरणो मे अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करे। उनके व्यक्तित्व व कृतित्व से सीख ले, जिससे देश मे देशभक्ति की भावना संचार अनवरत रूप से होता रहे।

जनपद फतेहपुर का भारत देश की स्वतंत्रता मे महत्वपूर्ण योगदान रहा है, चाहे वह 1857 का स्वतंत्रता संग्राम रहा हो या फिर उसके बाद का आजादी का संघर्ष। देशप्रेम की भावना से ओत प्रोत चाहे ठाकुर दरियाव सिंह या ठाकुर जोधा सिंह का सशस्त्र संग्राम रहा हो, चाहे कलम के पुरोधा गणेश शंकर विद्यार्थी या श्यामलाल गुप्ता द्वारा कलम से किया गया संघर्ष रहा हो। फतेहपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियो ने भारत देश की स्वतंत्रता के लिये अपना सर्वोच्च योगदान किया है। जिनके कारण आज जनपद फतेहपुर भारत की आजादी के लिये हुये स्वतंत्रता संग्राम मे अमिट छाप रखता है।

देश मे मनाये जा रहे आजादी के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य मे हम अपने जनपद फतेहपुर के कुछ ऐसे अमर देशप्रेमियो के जीवन व स्थानो के बारे मे संक्षिप्त प्रकाश डालेगे जिन्होने परतंत्रता की बेडियो मे जकडे विलासता पूर्ण जीवन को त्याग कर स्वतंत्रता की सांस के लिये संघर्ष किया, बलिदान दिया, और अपना नाम भारत के इतिहास मे स्वर्ण अक्षरो मे अंकित कर गये। ऐसे बलिदानियो को मरे ा शत् शत् नमन है।

इस लेख को लिखने का मेरा उद्देश्य मात्र जनपद फतेहपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियो के विषय मे जानकारी साझा करना है, किसी की भावनाओ को आहत करना नही है। लेख लिखते समय तक जितनी जानकारी मुझे मिली वह मैने साझा की है। यदि किसी महानुभाव द्वारा मुझे जानकारी उपलब्ध करायी जायेगी तो उसे अगले अंक मे प्रसारित किया जायेगा।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेंनानी ठाकुर दरियाव सिंह

भारत देश मे हुये प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे जनपद फतेहपुर के साथ साथ अवध क्षेत्र मे क्रान्ति की ज्वाला जलाने वालो मे ठाकुर दरियाव सिंह का नाम सबसे आगे है, और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे स्वर्ण अक्षरो मे दर्ज है। ठाकुर दरियाव सिंह का
जन्म वर्ष 1795 मे जनपद फतेहपुर के खागा कस्बे के प्रतिष्ठित क्षत्रिय परिवार मे हुआ था। इनके पिता का नाम ठाकुर मर्दन सिंह था, जो कि खागा तहसील के बडे जमीदार थे। इनका एक सुदृढ किला था, जिसे स्थानीय भाषा मे गढी नाम से जाना जाता था, जिसके अवशेष आज भी खागा कस्बे मे मौजूद है। इनकी शादी रायबरेली के सरेनी गांव मे सुगन्धा के साथ हुयी थी, जो गौतमवंशी क्षत्रिय थी। इनके दो पुत्र देव सिंह व सुजान सिंह व दो पुत्रियां थी। पुत्रियो की शादी किशनपुर कस्बे के रावत क्षत्रिय परिवार मे हुयी थी, जिनके वश्ं ाज आज भी किशनपुर कस्बे मे रहते है।

ठाकुर दरियाव सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत की दासता कभी नही स्वीकार की और फतेहपुर मे अंग्रजो शासन स्थापित होने से लेकर वर्ष 1858 तक लगातार संघर्ष किया। इन्होने सिर्फ फतेहपुर के साथ साथ पडोसी अन्य कई जिलो मे अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध किया और अनेको युद्धो मे अंग्रजो को परास्त करके विजय हासिल की थी।

ठाकुर दरियाव सिंह के पुत्र सुजान सिंह ने इनके आदेश मे 08 जून को खागा तहसील व अंग्रेजी कार्यालयो व आवासो मे कब्जा कर लिया था। 10 जून 1857 को इनके सहयोगी शिवदयाल सिंह जमरावां व अन्य क्रान्तिकारी साथियो व इनकी सेना जिसका नेतृत्व इनके पुत्र सुजान सिंह कर रहे थे का अंग्रेजो की सेना के साथ भीषण युद्ध हुआ था। इस युद्ध मे ब्रिटिश हुकूमत के जिला जज मिस्टर टक्कर सहित कई अधिकारी व सैनिको को मारकर फतेहपुर मुख्यालय, कोषागार, जिला जेल, व अंग्रेजी कार्यालयो व आवासो को जीत लिया था, तथा 32 दिनो तक जनपद फतेहपुर मे अपनी स्वतंत्र सरकार चलायी थी। ठाकुर दरियाव सिंह
की देश भावना से प्रभावित होकर डिप्टी कलेक्टर हिकमतउल्ला भी दरियाव सिंह के साथ क्रान्तिकारी हो गये थे।

ठाकुर दरियाव सिंह उनकी सेना व क्रान्तिकारी साथियो ने 11 जुलाई 1857 को बिलन्दा, 12 जुलाई 1857 को फतेहपुर, 14 जुलाई 1857 को औंग, 16 जुलाई 1857 को अहिरवां कानुपर, 24 नवम्बर 1857 को पान्डु नदी के किनारे, 27 नवम्बर 1857 को कानुपर के द्वितीय युद्ध, व दिसम्बर 1857 मे पहाडी चित्रकूट मे अंग्रेजी सेना से आमने सामने से युद्ध किया था। इसके साथ ठाकुर दरियाव सिंह ने फतेहपुर व उसके आस पास के जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियो के साथ मिलकर एक संगठन तैयार किया और गुरिल्ला युद्ध करके अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष किया था।

04 फरवरी 1858 को ठाकुर दरियाव सिंह, पुत्र सुजान सिंह व 05 अन्य साथियो को धोखे से खागा मे गिरफ्तार कर लिया गया था, और मुकदमा संख्या 4 वर्ष 1858 बगावत सरकार कैसरहिन्द बनाम दरियाव सिंह आदि चलाकर दिनांक 06 मार्च 1858 को जिला कारागार मे इनको फांसी दे दी गयी थी और इनकी जमीन जायदाद को ब्रिटिश हुकूमत ने जबरन जब्त कर लिया था। जनपद मे 06 मार्च बलिदान दिवस के रूप मे जाना जाता है।

ठाकुर दरियाव सिंह की फतेहपुर विजय के बाद जपनद मे 32 दिनों तक अपनी स्वतंत्र सरकार चलायी थी, यह एक ऐसी उपलब्धि थी, जिसका अन्य कोई दूसरा उदाहरण सम्पूर्ण भारत मे ब्रिटिश हुकूमत स्थापित होने के बाद नही मिलता है। ठाकुर दरियाव सिंह का 1857 स्वतंत्रता संग्राम मे इसलिये भी विशिष्ट स्थान है क्योकि जहां 1857 मे अधिकांश रियासतो ने अपनी डलहौजी की विलय की नीति से अपनी रियासतो को बचाने के लिये युद्ध किया वही ठाकुर दरियाव सिंह ने विशुद्ध देशप्रेम की भावना से अंग्रजो के खिलाफ युद्ध लडा था। देश आजादी के बाद आपके सम्मान मे भारत सरकार द्वारा वर्ष 2021 मे फतेहपुर के मेडिकल कालेज का नाम ठाकुर दरियाव सिंह व उनके शिष्य ठाकुर जोधा सिंह के नाम पर संयुक्त रूप से रखा गया है।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर जोधा सिंह अट्टैया

ठाकुर जोधा सिंह का जन्म फतेहपुर के बिन्दकी तहसील के रसूलपुर गांव मे प्रतिष्ठित क्षत्रिय परिवार मे हुआ था। इनके पिता का नाम ठाकुर भवानी सिंह था, जो कि ख्याति प्राप्त जमीदार थे। ठाकुर जोघा सिंह ठाकुर दरियाव सिंह के क्रान्तिकारी जीवन से बहुत प्रभावित थे, और उनको अपना गुरू मानकर उनके निर्देशन मे अंग्रेजो के विरूद्ध बिन्दकी क्षेत्र मे संघर्ष किया था। ठाकुर जोधा सिंह ने बिन्दकी के आस पास के क्रान्तिकारियो को मिलाकर एक सेना तैयार की और समय समय पर ठाकुर दरियाव सिंह के साथ मिलकर अंग्रेजो के विरूद्ध युद्ध किया था। जोधा सिंह को गुरिल्ला युद्ध मे महारत हासिल थी। जोधा सिंह व उनके साथियो का 02 नवम्बर 1857 को खजुहा के पास अंग्रेजी सेना से भीषण युद्ध हुआ जिसमे कर्नल पावेल व उसके कई सिपाही मारे गये थे। इन्होने 09 दिसम्बर 1857 को जहानाबाद मे तहसीलदार को बन्दी बना लिया था। ठाकुर जोधा सिंह जी0टी0 रोड पर अंग्रेजो की रसद व सामग्री को लूट लेते थे और गुरिल्ला युद्ध करके अंग्रेजो को क्षति पहुचाते रहते थे।

दिनांक 04 फरवरी 1858 को ठाकुर दरियाव सिंह की गिरफ्तारी की खबर पाकर इन्होने छोटी तोपो और अपने बहुत सारे क्रान्तिकरी साथियो के साथ अमौली, जहानाबाद, खजुहा व कल्यानपुर के थाने व तहसील को लूट लिया था, तथा कई अंग्रेज
सैनिको को मार दिया था। परन्तु वह अंग्रेजो की पकड से दरियाव सिंह को नही छुडा पाये। इनका संघर्ष ठाकुर दरियाव सिंह की फांसी के बाद भी अंग्रेजो के विरूद्ध जारी रहा।

दिनांक 28 अप्रैल 1858 को कर्नल क्रस्टाइज ने ठाकुर जोधा सिंह को उनके 51 साथियो सहित गिरफ्तार कर लिया और खजुहा के पास सडक किनारे स्थित इमली के पेड पर इनको इनके 51 साथियो सहित फांसी पर लटका दिया था। जिनके शव कई दिनो तक उस इमली के पेड मे लटकते रहे थे। उस इमली के पेड को अब बावनी इमली के नाम से जाना जाता है। इनके वंशज आज भी ग्राम रसूलपुर मे रहते हैं।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेंनानी हिकमतउल्ला खां

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे हिकमतउल्ला का बलिदान विशेष स्थान रखता है। इनका जन्म पश्चिम बंगाल मे हुआ था। इनका चयन डिप्टी कलेक्टर के पद पर हुआ था, जिनकी नियुक्ति जनपद फतेहपुर मे हुयी थी। 08 जून 1857 को ठाकुर दरियाव सिंह के पुत्र सुजान सिंह ने खागा तहसील से अंग्रेजी सत्ता को उखाड कर अपनी स्वतंत्र सरकार स्थापित कर दी तो यह दरियाव सिंह से इतने प्रभावित हुये कि यह क्रान्तिरियो से मिल गये और अंग्रेजो की गुप्त सूचनाओ को क्रान्तिकारियो को देने लगे। स्वतंत्र सरकार की स्थापना के बाद ठाकुर दरियाव सिंह ने हिकमतउल्ला खां को फतेहपुर का चकलेदार(जिलाधीश) बना दिया था जो दिनांक 10 जून 1857 से 11 जुलाई 1857 तक फतेहपुर मे स्वतंत्र सरकार के जिलाधीश रहे।

दिनांक 12 जुलाई को अंग्रेजी सेनानायक मि0 हैवलाक ने स्वतंत्र सरकार की सेना को परास्त करके जनपद फतेहपुर मे पुनः कब्जा कर लिया और हिकमतउल्ला को गिरफ्तार कर लिया था। अंग्रेजी सेनानायक ने हिकमतउल्ला के साथ बर्बर व अमानवीय व्यवहार करते हुये दिनांक 13 जुलाई 1857 को उनका सर काटकर कोतवाली के गेट पर लटका दिया था। देश आजादी के बाद स्थानीय नगर निकाय द्वारा आपके सम्मान मे एक पार्क व कोतवाली के गेट का नामकरण आपके नाम पर रखा गया है।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर शिवदयाल सिह

ठाकुर शिवदयाल सिंह का जन्म फतेहपुर तहसील के अर्न्तगत जमरांवा गांव मे सन् 1815 मे हुआ था। इनके पिता का नाम ठाकुर रामबख्श सिंह रघुवंशी था, जो कि एक बडे जमीदार थे। आपकी और ठाकुर दरियाव सिंह की ससुराल रायबरेली के सरेनी गांव मे एक ही परिवार मे ही थी। ठाकुर शिवदयाल सिंह ने अपने क्रान्तिकारी साथियो साथ दिनांक 10 जून 1857 को ठाकुर सुजान सिंह के नेतृत्व मे फतेहपुर मे अंग्रेजी सेना के विरूद्ध युद्ध लडकर फतेहपुर को जीत लिया था। इसके अलावा 12 जुलाई को बिलन्दा व अन्य युद्धो मे शिवदयाल सिंह ने ठाकुर दरियाव सिंह के साथ मिलकर संघर्ष किया है।

ठाकुर शिवदयाल सिंह को 04 फरवरी 1858 को मेजर मिडिलटन ने उनके गांव जमरांवा से गिरफ्तार कर लिया था, और दिनांक 06 मार्च 1858 को ठाकुर दरियाव सिंह के साथ ही जिला जेल फतेहपुर मे फांसी दे दी गयी थी।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी

भारत की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम अगर युद्ध नीति का परिचारक है तो वही 1857 के बाद का स्वतंत्रता संघर्ष अहिंसात्मक संघर्ष के रूप मे विश्व प्रसिद्ध है। कलम के पुरोधा गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म फतेहपुर के हथगांव कस्बे मे दिनांक 26 अक्टूबर 1890 कायस्थ परिवार मे हुआ था। इनके पिता का नाम जय नारायण था। वर्ष 1916 मे लखनऊ मे गांधी जी से मुकालात के बाद विद्यार्थी जी राष्टीªय आन्दोलन से जुड गये। प्रारम्भ मे विद्यार्थी जी ने प्रसिद्ध क्रान्तिकारी पत्रिका कर्मयोगी और स्वराज से
जुडकर क्रान्ति ज्वाला को आमजन तक पहुचाने का कार्य किया, और बाद मे वर्ष 1920 मे आपने प्रताप नाम से दैनिक अखबार का संचालन शुरू किया जो अपनी शोषितो व वंचितो की आवाज के साथ साथ अपनी क्रान्तिकारी विचारधारा के लिये जाना जाता था। रायबरेली के किसानो के हितो की पैरवी करने के कारण अंग्रेजो ने इनको दो वर्ष की कठोर सजा देकर जेल भेज दिया था।

विद्यार्थी जी वर्ष 1925 मे कांग्रेस के कानपुर के प्रान्तीय विधान परिषद सदस्य चुने गये और 1929 तक सदस्य के रूप मे कार्य किया। वर्ष 1928 मे आपने शोषितो व मजदूरो के हक लिये मजदूर सभा का गठन किया। मार्च 1930 मे आपको नई दिल्ली मे गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया और 09 मार्च 1931 मे आपको गांधी-इरविन समझौते के तहत रिहा कर दिया गया था। वर्ष 1931 मे आपकी कानपुर मे मृत्यु हो गयी थी। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार द्वारा आपके सम्मान मे डाक टिकट जारी किये गये और कानपुर के हवाई अड्डे व मेि डकल कालेज का नाम आपके सम्मान पर रखा गया है।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्यामलाल गुप्ता पार्षद

आपका जन्म कानपुर के जनरलगंज मे 09 सितम्बर 1896 मे हुआ, अपाके पिता का नाम विश्वेश्वर प्रसाद व माता का नाम कौशल्या देवी था। आपको फतेहपुर शहर के स्वतंत्रता अभियानो का प्रचार प्रसार का जिम्मा दिया गया था। स्वतंत्रता आन्दोलनो के कारण आपको वर्ष 1921,1930 व 1944 मे जेल मे डाल दिया गया था। श्री श्यामलान गुप्ता की दिनांक 10 अगस्त 1977 को मृत्यु हे गयी थी।

श्री श्यामलाल गुप्ता ने वर्ष 1924 मे प्रसिद्ध झण्डा गीत विजयी विश्व तिरंगा प्यारा की रचना किया था। आपको वर्ष 1969 मे सर्वोच्च नागरिकता पुरस्कार पद्मश्री दिया गया था, एवं आपके सम्मान मे डाक टिकट जारी किया गया था।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर सुजान सिंह

भारत के 1857 हुये प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे जनपद फतेहपुर के ठाकुर सुजान सिंह का नाम अपने अदम्य साहस कुशल योद्धा, रणनीतिकार, रण कौशल के कारण स्वर्ण अक्षरो मे दर्ज है। आपका जन्म महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर दरियाव सिंह के यहा वर्ष 1817 मे खागा कस्बे मे हुआ था, इनकी माताजी रायबरेली के सरेनी के प्रतिष्ठित बैस क्षत्रिय परिवार की कन्या थी।

ठाकुर सुजान सिंह दरियाव सिंह की शाही सेना के सेनानायक थे, जिन्होने ठाकुर दरियाव सिंह के आदेश पर 08 जून 1857 को खागा तहसील मे अपनी सेना के साथ मिलकर अंग्रेजी सेना को परास्त कर दिया तथा खागा तहसील के सरकारी खजाने, कार्यालय व आवासो को अपने कब्जे मे ले लिया था।

08 जून को खागा मे अपना शासन स्थापित कर देने के बाद सुजान सिंह ने 10 जून 1857 को अपनी सेना तथा अपने साथी शिवदयाल सिंह जमरावा व अन्य क्रान्तिकारी साथियो के साथ मिलकर जनपद फतेहपुर से ब्रिटिश हुकूमत को उखाड
फेकने के लिये फतेहपुर पर आक्रमण कर दिया। जनपद फतेहपुर मे दोनो ओर से भीषण संघर्ष हुआ, इस युद्ध मे अंग्रेज जिलाजज मिस्टर टक्कर समेत कई अधिकारी व सिपाही मारे गये और अंग्रेजो की सेना का हराकर सुजान सिंह फतेहपुर के जिला कारागार, कोषागार, प्रेसबिटेरियन की इमारत समेत सारे अंग्रेजी आवासो व कार्यालयो को अपने अधिकार मे ले लिया था, और अपना झण्डा फरहा दिया था, और अपने पिता ठाकुर दरियाव सिंह के साथ मिलकर 32 दिनांे तक फतेहपुर स्वतंत्र सरकार चलायी थी।

ठाकुर सुजान सिंह ने अपने पिता के साथ मिलकर अंग्रेजो के विरूद्ध कई युद्ध लडे और उनमे विजय हासिल की जिनमे 27 नवम्बर 1857 की नाना साहब व ठाकुर दरियाव सिंह के नेतृत्व मे कानपुर नगर की विजय महत्वपूर्ण थी। अपनी मोंर्चाबन्दी मजबूत करने के लिये सुजान सिंह ने मझिलगांव समेत जी0टी0 रोड पर कई पुलिस चौकियो की स्थापना की थी। और जी0टी0 रोड से अंग्रेजो का आवागमन कई महीनो तक बन्द कर दिया था। केशेाराम पण्डित की गद्दारी के कारण सुजान सिंह को
उनके पिता ठाकुर दरियाव सिंह के साथ खागाा कस्बे से रात्रि मे धोखे से गिरफ्तार कर लिया गया और मुकदमा संख्या 4 वर्ष 1858 बगावत सरकार कैसरहिन्द बनाम दरियाव सिंह आदि चलाकर दिनांक 06 मार्च 1858 को जिला कारागार मे फांसी दे दी गयी थी।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर महराज सिंह

आपका जन्म ग्राम पहुर (रामपुर) मे हुआ था। आप ठाकुर जोधा सिंह के अभिन्न साथी व उनके सेनाननायक थे। इन्होने अंग्रेजो के खिलाफ कई युद्ध लडे थे। ठाकुर महराज सिंह ने दिनांक 09 नवम्बर 1857 को आपने कल्याणपुर थाने व तहसील को लूट लिया था। ठाकुर जोधा सिंह की मृत्यु के उपरान्त आप अज्ञातवाश मे चले गये थे।

जनपद के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम स्थल

  • ठाकुर दरियाव सिंह स्मारक स्थल खागा फतेहपुर
  • बावनी इमली खजुहा फतेहपुर
  • हजारीलाल का फाटक चौकबाजार फतेहपुर
  • ठाकुर शिवदयाल सिंह की कोठी जमरावां फतेहपुर

जनपद फतेहपुर के अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानी

1857 के अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जिनके नाम ज्ञात हो सके है जिन्होने देशप्रेम मे अपना सर्वस्व निछावर किया। उनके संक्षिप्त विवरण निम्नवत् हैः-

1- ठाकुर निर्मल सिंह पुत्र ठाकुर मर्दन सिंह निवासी खागा फतेहपुर।
2- ठाकुर बख्तावर सिंह पुत्र बहादुर सिंह निवासी खागा फतेहपुर।
3- ठाकुर बहादुर सिंह पुत्र ठाकुर विक्रम सिंह निवासी खागा फतेहपुर।
4- ठाकुर तुरंग सिंह पुत्र हिमकरण सिंह निवासी खागा फतेहपुर।
5- ठाकुर महराज सिंह निवासी ग्राम पहुर फतेहपुरं
6- ठाकुर सिच्चा सिंह निवासी ग्राम सरकन्डी फतेहपुर।
7- ठाकुर रघुनाथ सिंह पुत्र बहादुर सिंह निवासी खागा फतेहपुरं।
8- अमीनबक्श निवासी बरहटा खखरेरू खागा फतेहपुर।
9- बुधा पंण्डित निवासी बरहटा खखरेरू खागा फतेहपुर।
10- अमीर पुत्र अलीबक्श निवासी बरहटा खखरेरू फतेहपुर।
11- अमानबक्श पुत्र अलीबक्श निवासी बरहटा फतेहपुर।
12- गुलाम हुसैन निवासी खखरेरू फतेहपुर।
13- लाल पंडित निवासी बरहटा फतेहपुर।
14- ठाकुर देव सिंह पुत्र ठाकुर दरियाव सिंह खागा फतेहपुर।
15- ठाकुर मथुरा सिंह खागा फतेहपुर।

इसके अतिरिक्त सबसुख सिंह, बैजू, पंचम, चमरू, कोदी, बल्दी, ननका, चन्दी महिमान, गंगादीन, नरायन, लाल मुहम्मद, यासीन, मियाबक्श समस्त निवासीगण खागा फतेहपुर भी स्वतंत्रता संग्राम मे शामिल रहे है।

जनपद फतेहपुर के स्वतंत्रता संग्राम मे शामिल वह गांव जिनको अंग्रेजो ने जला दिया

तहसील फतेहपुर

चुरियानी, बिलन्दा, हस्वां, कोराई, मवई, जमरांवा, कोर्राकनक, व फतेहपुर शहर।

तहसील बिन्दकी

ग्राम नोनारा, परसेढा खजुहा, रसूलपुर, पहुर, औग चांदपुर बंधवा आदि गांव।

तहसील खागा

बुदवन, सरसई, खागा, सरकन्डी, खखरेरू, कोट, नरौली, रारी, इटोलीपुर, एकडला, ऐलई, हरदो, कटोघन, आदि गंाव।

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